बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

व्यंग्य-काग वार्ता

अवधेश अवस्थी, गीदम, जिला दंतेवाड़ा (36 गढ़)
काग - वार्ता
एक कौए ने
दूसरे कौए से
पूछा-
भाई ये बता
ये आदमी
पितृपक्ष में
हमे क्यों
ढूंढता है,
बाकी दिन
यही आदमी
गुलेल ले के
हमारे पीछे
घूमता है।

दूसरा कौआ बोला-
सुन रे !
लंबी चोंच,
तू नही समझेगा
आदमी की सोच।

आदमी के
मरने के बाद
फ्रेमवाली फ़ोटो में
जैसे ही
माला पड़ती है
रिश्तेदारियां
सम्पति हेतु
आपस मे लड़ती हैं।

पितृपक्ष में ही बुजुर्गों का
यहाँ सम्मान होता है,
जीते जी बुजुर्ग
खून के आँसू
रोता है.....!

कौआ बोला
साल में एक बार
खुलती है
अपनी तकदीर,
भाई तू मजे से
खीर का खीर!

आदमी की तरह
खींच मत पांव,
बेवजह मत कर
कांव - कांव।

इतना सुनने के बाद ही
पहला कौआ दूसरे की
बात समझ पाया,
आसमान की तरफ
चोंच करके
अच्छा हुआ भगवान
तूने हमे
आदमी नही बनाया,
आदमी नही बनाया।!