मंगलवार, 6 नवंबर 2018

ग़ज़ल-इंतज़ार

कंचन सहाय, बचेली,जिला दन्तेवाड़ा (छ.ग.)
गज़ल-इंतज़ार

अपने घर से अच्छा कोई घर नहीं लगता,
बच्चे बिना घर अपना कोई घर नहीं लगता।

दहशत है कई ज़माने में माना आजकल,
आदमी के बढ़कर अब कोई डर नहीं लगता।

मुद्दा यह नहीं कि कौन बेहतर है महफ़िल में,
हमको तुमसे अब कोई बेहतर नहीं लगता।

जब से दिल हार बैठे है तुम पर हमदम,
कोई जीत इस हार से बढ़कर नहीं लगता।

कहने को अपने कई रिश्तेदार हैं ज़माने में,
तेरे बिना सकून का पल नहीं लगता।

आ जाओ कि इंतज़ार में हैं पलके बिछाए,
दिल हमारा तुमसे बिछड़कर नहीं लगता।

बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

व्यंग्य-काग वार्ता

अवधेश अवस्थी, गीदम, जिला दंतेवाड़ा (36 गढ़)
काग - वार्ता
एक कौए ने
दूसरे कौए से
पूछा-
भाई ये बता
ये आदमी
पितृपक्ष में
हमे क्यों
ढूंढता है,
बाकी दिन
यही आदमी
गुलेल ले के
हमारे पीछे
घूमता है।

दूसरा कौआ बोला-
सुन रे !
लंबी चोंच,
तू नही समझेगा
आदमी की सोच।

आदमी के
मरने के बाद
फ्रेमवाली फ़ोटो में
जैसे ही
माला पड़ती है
रिश्तेदारियां
सम्पति हेतु
आपस मे लड़ती हैं।

पितृपक्ष में ही बुजुर्गों का
यहाँ सम्मान होता है,
जीते जी बुजुर्ग
खून के आँसू
रोता है.....!

कौआ बोला
साल में एक बार
खुलती है
अपनी तकदीर,
भाई तू मजे से
खीर का खीर!

आदमी की तरह
खींच मत पांव,
बेवजह मत कर
कांव - कांव।

इतना सुनने के बाद ही
पहला कौआ दूसरे की
बात समझ पाया,
आसमान की तरफ
चोंच करके
अच्छा हुआ भगवान
तूने हमे
आदमी नही बनाया,
आदमी नही बनाया।!

बुधवार, 15 अगस्त 2018

ग़ज़ल

कभी-कभी कुछ लिखता हूँ....आज शहीदों को सलाम करने के बाद ....स्वतंत्रता दिवस की शाम को दिल करता था कुछ उल्लास से भरा लिखूं .......लाख कोशिश की ......पर अन्दर का दर्द ही तो कविता बनती है। 
जय नारायण सिंह, दन्तेवाड़ा (छ.ग.)

तवायफ़ और सियासत में ये फर्क है यारों
तवायफ़ रिज्क से पर सियासत लुट खाती है

बड़ी रंगीन तबीयत है वतन में इस खादी की
हादसों का मजमा लगा पूरा लुत्फ़ उठाती है

छीन कर रोटी हम मुफलिसों की जलालत से
हमारी बेबसी को जहालत इल्जाम लगाती है

सूखे होंठों और भूखे आँखों के हर प्रश्न पर ही
सियासत नई बगावत का इल्जाम लगाती है

किताबों में रिवाजों में कायदों का लहू बिखरा
तमगों औ तिजोरी का बस ये भूख मिटाती है

पसीने की बूंद देखकर चमके बस इनके आँखे
मेहनत से थके कांधो पर ये बाज़ार उगाती है

तहरीरों वादों और इरादों का कागजी इन्कलाब
रहनुमाओं के उगाल से हर नाली बजबजाती है

जेहनो में मुद्दे उगाती है सियासत बेख़ौफ़ नादाँ
पर अश्क-ओ-भूख भी पत्थरों में आग लगती है

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

कविता-मातृ दिवस

कंचन सहाय, बचेली,दन्तेवाड़ा (छत्तीसगढ़)
मातृ दिवस विशेष
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जब देखती हूँ कोई माँ
तुम बहुत याद आती हो।
आज भी ताज़ा वह छवि
बचपन में जैसी बिछड़ी।
काश समय रुक जाता
टाइम मशीन के सहारे
हम पहुंच जाते
गोद में तुम्हारे और
नाना-नानी के।
संसार रूपी रेगिस्तान में
मृगमरीचिका सी
तेरी याद
नयनों में फिर वही
ज्वार भर लाता।
खो गए
बचपन के दिन
तुम्हारा लाड़-मनुहार
मेरा राजसी ठाट-बाट
जुड़ा अभावों से
नाता।
काश! तुम होती
मेरे बेटे का बचपन
लोरियों, कहानियों से
सज जाता।
माँ ममता
की तुम्ही हो
परिभाषा।

मंगलवार, 31 जुलाई 2018

प्रदेश स्तरीय युवा कलमकार दंतेवाड़ा

शिवशंकर श्रीवास्तव
राज्य युवा आयोग छत्तीसगढ़ एवं साईनाथ फाउंडेशन रायपुर के सहयोग से जिला स्तरीय स्वर परीक्षण युवा कलमकार का आयोजन 01 जुलाई 2018 को किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ उपस्थित अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती के छायाचित्र में दीप प्रज्वलित माल्यार्पण कर किया गया।
कार्यक्रम के प्रथम चरण में स्वर परीक्षण का आयोजन हुआ। जिसमें विशाल जैनविरेश मिश्रशैलेन्द्र शर्मायोगेश सोनी, अमित ठाकुर प्रतिभागियों को चयनकर्ताओं के द्वारा प्रदेश स्तरीय युवा कलमकार हेतु चयन किया गया है।
कार्यक्रम के द्वितीय चरण में काव्य पाठ हुआ दन्तेवाड़ासुकमा जिले से आए रचनाकारों ने कविताव्यंग्यगीत-गज़लनज़्म रचनाओं से मंच को चार चांद लगा दिया।
समापन में कार्यक्रम के अतिथि देश में ख्याति प्राप्त व्यंग्यकार श्री अवधेश अवस्थी एवं गीतकार दादा जोकाल को शाल श्रीफलस्मृति चिन्ह के साथ सम्मानित किया गया।