मंगलवार, 16 जनवरी 2024

श्री अयोध्या राम मंदिर प्रतिष्ठा के लिए शिवशंकर श्रीवास्तव की विशेष कविताएं....

कविता "राम राम"

 

जिनके पास
रति भर कपट नहीं,
सारे जन्म जन्मांतर
के कपट त्यागने वाले,
सृष्टि के जीवात्मा को प्रणाम
करने वाले "राम" है! ।1 

 

जिनके पास
छल, कपट, भेद नहीं,
आज्ञा सूचक पुराणों के ज्ञाता,
सबका कल्याण करने वाले,
रघुकुल के "राम" है! ।2

 

राजाओं में श्रेष्ठ "राजा"
अतुलनीय देव "विधाता"
जन्म से मृत्यु तक "राम" है! ।3

 

तुम्हारे साथ
मित्र-शत्रु, नाते नहीं जाएंगे,
द्वेष मत करना  मेरा "राम राम"
"राम" से अभिमान करने वाले,
"राम" का शान भी श्मशान है! ।4
~शिवशंकर श्रीवास्तव, छत्तीसगढ़

 

बुधवार, 4 अक्तूबर 2023

पुस्तक "बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़ेडोंगर" (आस्था, इतिहास एवं संस्कृति) का विमोचन

शिवशंकर श्रीवास्तव
बस्तर क्षेत्र के भूतपूर्व शिक्षक रहे कवि लेखक श्री घनश्याम सिंह नाग की पुस्तक "बस्तर की प्राचीन राजधानी बड़ेडोंगर" (आस्था, इतिहास एवं संस्कृति) का विमोचन दिनाँक 03.10.2023 को छत्तीसगढ़ विधानसभा के उपाध्यक्ष एवं क्षेत्रीय विधायक केशकाल श्री संतराम नेताम के करकमलों से विमोचन किया गया। 

मंगलवार, 14 मार्च 2023

राष्ट्रीय कवि संगम का प्रथम संभागीय बस्तर अधिवेशन कांकेर में संपन्न

शिवशंकर श्रीवास्तव
दन्तेवाड़ा। राष्ट्रीय कवि संगम का संभागीय बस्तर अधिवेशन का आयोजन दिनांक 25 फरवरी 2023 को कांकेर में जिला ईकाई कांकेर के तत्वाधान में आयोजित किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ सर्वप्रथम आमंत्रित मुख्य अतिथियों के द्वारा माँ सरस्वती को दीप प्रज्वलित कर किया गया। अधिवेशन में आमंत्रित अतिथियों के द्वारा उद्धबोधन के पश्चात कांकेर के रचनाकारों के द्वारा प्रकाशित कविता संग्रह का विमोचन किया गया। बस्तर संभाग के समस्त जिला ईकाई के अध्यक्ष बस्तर, कांकेर कोंडागाँव, नारायणपुर, दन्तेवाड़ा, बीजापुर, सुकमा ने संगठनात्मक प्रतिवेदन प्रस्तुत किया इसके पश्चात राष्ट्रीय कवि संगम जिला ईकाई दन्तेवाड़ा के जिलाध्यक्ष वीरेन्द्र कौमार्य ने संगठनात्मक प्रतिवेदन प्रस्तुत कर गतिविधियों से अवगत कराया। प्रान्त और संभाग भर से आमंत्रित रचनाकारों ने रचना पाठ किया राष्ट्रीय कवि संगम के संभागीय बस्तर अधिवेशन में दन्तेवाड़ा से अवधेश अवस्थी, वीरेन्द्र कौमार्य, लोकेश्वर दास, शिवशंकर श्रीवास्तव उपस्थित थे।

मंगलवार, 6 नवंबर 2018

ग़ज़ल-इंतज़ार

कंचन सहाय, बचेली,जिला दन्तेवाड़ा (छ.ग.)
गज़ल-इंतज़ार

अपने घर से अच्छा कोई घर नहीं लगता,
बच्चे बिना घर अपना कोई घर नहीं लगता।

दहशत है कई ज़माने में माना आजकल,
आदमी के बढ़कर अब कोई डर नहीं लगता।

मुद्दा यह नहीं कि कौन बेहतर है महफ़िल में,
हमको तुमसे अब कोई बेहतर नहीं लगता।

जब से दिल हार बैठे है तुम पर हमदम,
कोई जीत इस हार से बढ़कर नहीं लगता।

कहने को अपने कई रिश्तेदार हैं ज़माने में,
तेरे बिना सकून का पल नहीं लगता।

आ जाओ कि इंतज़ार में हैं पलके बिछाए,
दिल हमारा तुमसे बिछड़कर नहीं लगता।

बुधवार, 3 अक्तूबर 2018

व्यंग्य-काग वार्ता

अवधेश अवस्थी, गीदम, जिला दंतेवाड़ा (36 गढ़)
काग - वार्ता
एक कौए ने
दूसरे कौए से
पूछा-
भाई ये बता
ये आदमी
पितृपक्ष में
हमे क्यों
ढूंढता है,
बाकी दिन
यही आदमी
गुलेल ले के
हमारे पीछे
घूमता है।

दूसरा कौआ बोला-
सुन रे !
लंबी चोंच,
तू नही समझेगा
आदमी की सोच।

आदमी के
मरने के बाद
फ्रेमवाली फ़ोटो में
जैसे ही
माला पड़ती है
रिश्तेदारियां
सम्पति हेतु
आपस मे लड़ती हैं।

पितृपक्ष में ही बुजुर्गों का
यहाँ सम्मान होता है,
जीते जी बुजुर्ग
खून के आँसू
रोता है.....!

कौआ बोला
साल में एक बार
खुलती है
अपनी तकदीर,
भाई तू मजे से
खीर का खीर!

आदमी की तरह
खींच मत पांव,
बेवजह मत कर
कांव - कांव।

इतना सुनने के बाद ही
पहला कौआ दूसरे की
बात समझ पाया,
आसमान की तरफ
चोंच करके
अच्छा हुआ भगवान
तूने हमे
आदमी नही बनाया,
आदमी नही बनाया।!

बुधवार, 15 अगस्त 2018

ग़ज़ल

कभी-कभी कुछ लिखता हूँ....आज शहीदों को सलाम करने के बाद ....स्वतंत्रता दिवस की शाम को दिल करता था कुछ उल्लास से भरा लिखूं .......लाख कोशिश की ......पर अन्दर का दर्द ही तो कविता बनती है। 
जय नारायण सिंह, दन्तेवाड़ा (छ.ग.)

तवायफ़ और सियासत में ये फर्क है यारों
तवायफ़ रिज्क से पर सियासत लुट खाती है

बड़ी रंगीन तबीयत है वतन में इस खादी की
हादसों का मजमा लगा पूरा लुत्फ़ उठाती है

छीन कर रोटी हम मुफलिसों की जलालत से
हमारी बेबसी को जहालत इल्जाम लगाती है

सूखे होंठों और भूखे आँखों के हर प्रश्न पर ही
सियासत नई बगावत का इल्जाम लगाती है

किताबों में रिवाजों में कायदों का लहू बिखरा
तमगों औ तिजोरी का बस ये भूख मिटाती है

पसीने की बूंद देखकर चमके बस इनके आँखे
मेहनत से थके कांधो पर ये बाज़ार उगाती है

तहरीरों वादों और इरादों का कागजी इन्कलाब
रहनुमाओं के उगाल से हर नाली बजबजाती है

जेहनो में मुद्दे उगाती है सियासत बेख़ौफ़ नादाँ
पर अश्क-ओ-भूख भी पत्थरों में आग लगती है

गुरुवार, 2 अगस्त 2018

कविता-मातृ दिवस

कंचन सहाय, बचेली,दन्तेवाड़ा (छत्तीसगढ़)
मातृ दिवस विशेष
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जब देखती हूँ कोई माँ
तुम बहुत याद आती हो।
आज भी ताज़ा वह छवि
बचपन में जैसी बिछड़ी।
काश समय रुक जाता
टाइम मशीन के सहारे
हम पहुंच जाते
गोद में तुम्हारे और
नाना-नानी के।
संसार रूपी रेगिस्तान में
मृगमरीचिका सी
तेरी याद
नयनों में फिर वही
ज्वार भर लाता।
खो गए
बचपन के दिन
तुम्हारा लाड़-मनुहार
मेरा राजसी ठाट-बाट
जुड़ा अभावों से
नाता।
काश! तुम होती
मेरे बेटे का बचपन
लोरियों, कहानियों से
सज जाता।
माँ ममता
की तुम्ही हो
परिभाषा।